हो चला प्रकंपित देश हित,
सुदृढ़ इसका आधार करो।
चेतना राष्ट्र की जकड़ रही,
करने को मुक्त प्रहार करो।
हे राम! उठाओ धनुष पुनः,
गगन भेदी तुम टंकार भरो।
रावण है बसा घर घर भीतर,
जन त्रास हरो संहार करो।
हिम शिख से सागर नख तक,
स्वप्न रामराज्य का साकार करो।
- आनंद मोहन श्रीवास्तव
(धन्यवाद भारत राजौरा)